चारदीवारी, बनीपार्क, सी-स्कीम, करतारपुरा और गोपालपुरा बाईपास से बहते हुए द्रव्यवती नदी में गिरने वाले करतारपुरा नाले का दम घुट चुका है। करीब 4 किमी लंबे इस नाले के दोनों तरफ भू-माफिया ने न केवल इसे मलबे से भर दिया है बल्कि इसके किनारे अवैध रूप से लोगों को भी बसा दिया है।
करतारपुरा नाले की वर्ष 2000 और आज के सेटेलाइट इमेज की तुलना करें तो यह नाला 80% तक पट चुका है। सबसे बड़ा सवाल है- बरसात के पानी का निकास अब कहां से होगा? क्याेंकि द्रव्यवती नदी के बाद करतारपुरा नाला में ही आधे शहर के ड्रीनेज जाता है। कैचमेंट एरिया में करीब 5 लाख आबादी रहती है। तेज बारिश भी हुई तो इन बस्तियों के अलावा सी-स्कीम समेत आधा जयपुर डूब जाएगा।
अलर्ट : आपके लिए ये 2 खतरे
1 नाला पटा तो पानी की निकासी नहीं होगी
नाले के किनारे चांदपाेल, एमआई राेड, सिंधी कैंप, बनीपार्क, सी-स्कीम, विधानसभा क्षेत्र, 22 गाेदाम, करतारपुरा, महेश नगर क्षेत्र में 5 लाख की आबादी रहती है। नाला पटने के कारण कैचमेंट एरिया के पानी का निकास नहीं हाे पाएगा। बारिश में पानी जमा होगा और आधा जयपुर बाढ़ की चपेट में होगा।
2 बीमारियां और दुर्गंध बढ़ेगी
आसपास की करीब 50 कॉलोनियों का वेस्ट पानी इसी नाले में गिरता है। क्याेंकि नाला पट गया है इसलिए इस पानी की पूरी तरह से निकासी नहीं हो पा रही। इससे पानी वहीं जमा हाेकर दुर्गंध और बीमारी पैदा कर रहा है। महामारी फैल सकती है।
नाले बनाने का काम जेडीए का है: निगम; अतिक्रमण निगम को हटाना चाहिए : जेडीए
- नगर निगम के मुख्य अभियंता अनिल सिंघल बोले- नाले की सफाई का जिम्मा नगर निगम का है। नाले के क्षेत्राधिकार काे लेकर अभी नगर निगम व जेडीए में तय नहीं हुआ है। नाले का निर्माण जेडीए करवाकर दे।
- जेडीए जाेन-5 उपायुक्त रवि विजय का कहना है कि नाले का जल्द ही सीमांकन करवाकर मलबा डालने से राेका जाएगा। नाले से अतिक्रमण हटाना व सफाई करना निगम का काम है।
- इधर, कलेक्टर डाॅ. जोगाराम बोले- नाले काे मलबा डालकर पाटा नहीं जा सकता। नगर निगम व जेडीए के अधिकारियों से बात कर इसे रोकेंगे।
हाईकाेर्ट के आदेश भी नहीं माने
करतारपुरा नाले काे मलबे से पाटना राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले अब्दुल रहमान वर्सेज राजस्थान राज्य 2004 के निर्णय का खुला उल्लंघन है। राजस्थान हाईकोर्ट ने 2004 में जिला कलेक्टरों और संबंधित जिला जल विशेषज्ञ समिति से अतिक्रमण को लेकर रिपोर्ट मांगी थी। इस पर हाईकोर्ट ने कहा था कि आजादी के समय जैसा जलग्रहण, बहाव क्षेत्रों का जैसा आकार और उपयोग था, उसे वैसे ही रखा जाए। खासतौर से शहरी क्षेत्रों में, जल निकासी चैनलों का सीमांकन करना अनिवार्य किया था।